Sunday, January 25, 2009

क्या ये आतंकवाद नहीं?


कुछ ही महीने पहले अपने एक दोस्त से मिली... बहुत दिनों बाद मुलाक़ात हुई थी...और सच कहूं तो उससे मिलकर बहुत अच्छा भी लगा। सिर्फ २ साल में ही उसने काफी तरक्की कर ली थी। मुझसे चार गुना सैलरी थी...और खर्च भी वैसा ही। .उसका नाम नहीं लिखूंगी...इसलिए नहीं क्योंकि मैं उसकी पहचान गुप्त रखना चाहती हूं...बस इसलिए कि क्योंकि आजकल मुझे अपने आसपास हर शख्स में उसका अक्श नज़र आने लगा है। तो जैसा कि आजकल होता है। हफ्ते में पांच दिन वो जमकर काम करता था और दो दिन जमकर मस्ती। लेकिन अंदर कहीं कुछ चुभ भी रहा था। मुझे लगा कि ज़िंदगी में मैं कहीं पीछे छूट गई हूं। एक बार तो ये भी सोचा कि अगर आईटी सेक्टर ज़्वाइन किया होता तो तरक्की के ज़्यादा चांसेज़ थे। लेकिन आज हालात बिल्कुल बदले हुए हैं। उसमें वो ज़िदादिली नज़र ही नहीं आती...बिल्कुल डरा हुआ, सहमा हुआ सा लगता है। जिन मदों में खर्च करने से पहले वो सोचता भी नहीं था आज वही उसे भारी लग रहे हैं। हर हफ़्ते जमने वाली महफिलें सूनी हो गई हैं। मोबाइल का बिल आधा भी नहीं रह गया है और यहां तक कि सिगरेट की लत भी लगता है छूट जाएगी। हर थोड़ी देर के बाद उसके मुंह से निकल ही जाता है कि यार इंडस्ट्री की हालत बहुत ख़राब है। यार आजकल ऑफिस में बहुत टेंशन चल रही है। न जाने कब नौकरी से हाथ धोना पड़ जाए। अपने हमेशा हंसते रहने वाले दोस्त के मुंह से ऐसी बातें सुनकर इस दुनिया पर, इस सिस्टम पर बेहद गुस्सा आता है? क्या दुनिया सिर्फ एक बाज़ार भर है? क्या इंसान सिर्फ एक मशीन भऱ है? जब तक तुम्हारा काम है तब तक इस मशीन को घिसते रहो...और जब काम निकल जाए तो उसे कबाड़ की तरह फेंक दो। आर्थिक मंदी, आर्थिक मंदी सुन-सुन कर कान पक गए हैं। ये आर्थिक मंदी कोई आसमान से तो टपकी नहीं है। दुनिया में पैसा पहले भी उतना ही था जितना कि अब है। कंपनियों के ग़लत फ़ैसले, ग़लत प्रबंधन का खामियाज़ा बेचारे वो लोग क्यों उठाएं जो अपनी दिन रात की मेहनत उस कंपनी को आगे बढ़ाने में लगा रहे हैं। तर्क कहता है कंपनी का बचना ज़्यादा ज़रूरी है तो क्या कंपनी को बचाने के लिए कर्मचारी की बलि लेना ज़रूरी है। अभी तो एक सत्यम का सच सामने आया है। कौन जाने अभी ऐसे कितने सच अंधेरे में दफ़न हैं? तो क्या हर बार जब ऐसा कोई सच सामने आएगा तो मेरा कोई दोस्त अपनी मुस्कान खो देगा? ऐसे तो एक दिन हम सब मुस्कुराना भूल जाएंगे। तब ये कंपनियां अपनी तरक्की का जश्न क्या लाशों के साथ मनाएंगी?

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