Monday, November 3, 2008

सलाम kumble


कोटला टेस्ट का आखिरी दिन....दोपहर के बाद का समय...मैच में कोई रोमांच बचा नहीं था...सब जानते थे कि टेस्ट ड्रा हो रहा है...इस टेस्ट में ऐसा कोई रिकॉर्ड भी नहीं बना कि लोग इसे याद रख सकें। फिर भी ये टेस्ट खास बन गया। अनिल कुंबले ने इसी मैदान को चुना क्रिकेट से अपनी विदाई के लिए। अब साबित करने के लिए कुछ बचा भी तो नहीं था। कोटला की पिच सही मायने में कुंबले की है। सात फरवरी १९९९ का वो दिन क्या कोई क्रिकेट प्रेमी भूल सकता है? यही तो वो मैदान था जहां कुंबले ने पाकिस्तान के सभी १० खिलाड़ियों को अपनी फिरकी के जाल में फंसाया था। लोगों ने कहा कि ये एक चमत्कार है। लेकिन वो चमत्कार नहीं था। वो इस सीधे, सज्जन और सौम्य खिलाड़ी की बरसों की तपस्या का नतीजा था। उसकी दिन रात की मेहनत का नतीजा था। यही वो मैदान था जहां पहली बार कुंबले सचिन, द्रविड़ औऱ सौरव गांगुली को पीछे छोड़ कर एक स्टार बने। कुंबले के इस फैसले के पीछे वजह जो भी हो लेकिन सच यही है कि उन्हें कभी भी वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हक़दार थे। एक आद मौकों को छोड़ दें तो कुंबले कभी स्टार नहीं बन पाए। दरअसल स्टार बनना वो सीख ही नहीं पाए। बेवजह के बयान देना, मैदान के बीच में डांस करना, नए-नए हेयर स्टाइल बनाना, विपक्षी खिलाड़ियों से उलझना, शर्ट उतारकर हवा में लहराना...अगर कुंबले ये सब कर पाते तो आज वो भी स्टार होते। लेकिन कुंबले ने तो सिर्फ खेलना सीखा था। क्रिकेट उनके लिए शौक या पैसा कमाने का ज़रिया नहीं बल्कि उनके जीने का ज़रिया है। वरना क्या पड़ी थी उन्हें वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ टूटे हुए जबड़े के साथ मैदान में उतरने की। अंगुली में लगे ११ टांके क्यों नहीं रोक पाए कुंबले के कदम। सिर्फ इसलिए क्योंकि वो योद्धा है। सिर्फ इसलिए क्योंकि उसने हारना नहीं सीखा है। वो जानता है कैमरे के फ्लैश कभी उसके लिए नहीं चमकेंगे, रिपोर्टर कभी उनकी बाइट के लिए नहीं भागगें। लेकिन उसे ये भी पता है कि वो नींव है...इमारत कितनी भी बुलंद क्यों ना हों, कितनी भी खूबसूरत क्यों ना हो नींव अगर ज़रा सा भी हिल जाए तो उसे ज़मीदोज़ होने में देर नहीं लगती। कभी अनिल कुंबले ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि क्रिकेट बल्लेबाज़ों का खेल है। एक बल्लेबाज़ को एक छक्के से उतनी तालियां मिल जाती हैं जितनी एक गेंदबाज़ को विकेट लेने पर भी नहीं मिलती। मीडिया में छाई एक दिन की सुर्खियां भारतीय क्रिकेट के लिए कुंबले के योगदान को नहीं बता सकती, कुंबले के खाते में दर्ज ६१९ विकेट उसके जीवट को नहीं समझा सकते। अब अनिल कुंबले मैदान पर क्रिकेट खेलते नज़र नहीं आएंगे। युवा ब्रिगड का सपना देखने वाले कुंबले की विदाई से खुश हैं लेकिन कुंबले की खाली जगह कौन भरेगा ये जवाब किसी के पास नहीं है, क्योंकि कुंबले के संन्यास की वकालत करने वाले भी जानते हैं कि कुंबले की जगह कोई भर नहीं सकता। कंचन

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