Friday, October 26, 2007

अपनी दिशा

दिशा...पूरब,पश्चिम,उत्तर,दक्षिण। यही या और भी । दस दिशाएं... क्या केवल दस...दहाई के छूते ही समाप्त। इससे तो कई बड़ा है दिशाऒं का दायरा। या कहें कि दिशाऒं का तो कोई दायरा ही नहीं है। जब जहां जिस ऒर खड़े हों मुंह बायें दिशा बन जाती है। क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि आपकी अपनी भी कोई दिशा हो सकती है। दसों दिशाऒं के प्रतीक दस घोड़ों के रथ पर सवार सूर्य की तरह आप भी अपनी दिशाऒं के स्वामी हो सकते हैं। क्या आपने कभी उस स्वामित्व को महसूस नहीं किया है।
चिट्ठों की यह दुनिया भी तो अपनी अपनी दिशा की द्योतक है। आप अपने चिट्ठे के स्वामी हैं। जो भी आपके चिट्ठे पर नज़र डालेगा वह कुछ देर के लिए ही सही उस दिशा में सोचने लगेगा जो आपने उसे दिखाई है। यह आपकी अपनी नितान्त मौलिक दिशा का प्रभाव है।

हम चाहते हैं कि आप अपनी दिशा से जुड़ें। इसे अपनी दिशा ही समझें। अपने विचार व्यक्त करें। बहस का माहौल तैंयार करें। चिट्ठों का यह संसार एक नया वैचारिक आन्दोलन खड़ा कर सकता है।कुछ और न सही हमें सोचने समझने के लिए प्रेरित कर सकता है। हमें अपनी दिशा अपना रास्ता खोजने में मदद कर सकता है। यह हमारी अपनी दिशा होगी।हमारा अपना अन्दाज़। ऒर वैसे भी-
क्यों अपनी तरह जीने का अन्दाज़ छोड़ दें
और है ही क्या अपना इस अन्दाज़ के सिवा।

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