Friday, October 5, 2007

अक्स

जीने का जज्बा


कैसे कहैं कि कोई बुरा ख्वाब नहीं है


इसे कहते हैं खूबसूरती कि इन्तहां जाने क्यों ये आंखें आज भी कुछ बोलती हैं




भीड़ की आदत नहीं है मैं अभी मासूम हूं


शब्द ही नहीं चित्र भी होते हैं विचारों का आइना

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