Friday, October 5, 2007

तय करो किस ओर हो.....

कई विचार....ढेरों विकल्प.....पर आपको तय करना ही होगा कि आखिर....किस ओर हैं आप

आम आदमी का स्वास्थ्य

भारतीय जनसंचार संस्थान में पत्रकारिता की पढाई कर रहे छात्र छात्राऒं के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का विषय था जनस्चास्थ्य यवं जनसंचार। जनस्वास्थ्य के तत्वावधान में आयोजित एस कार्यक्रम में जो उठाये गये वो काफी अहम थे मसलन बडे बडे अस्पतालों नर्सिंग होम अदि के बडे शहरों से लेकर छोटे शहरों तक में खुल जाने के बावजूद क्या कारण हैं कि आम आदमी के स्वास्थ्य का स्थिति अब तक नहीं सुधर पाई है। हैजा निमोनिया एनीमिया डैंगू जैसे रोगों से मरने वाले लोगों में कमी नहीं हो पा रही। यहां मीडिया की भूमिका बडी अहम हो जाती है कि बावजूद इन बत्तर हालातों के मीडिया स्वास्थ्य के मुद्दों को जगह देने को तैयार नहीं है। जगह मिल भी रही है तो फिटनेस या सेक्स सरीखे कम जरूरी मुद्दो को या फिर बडीबडी कम्पनियों द्वारा कराये जा रहे शोधों को जिनका आम आदमी की बीमारियों से कोई सरोकार ही नहीं है। आजादी के बाद जबसे वैशवीकरण ने उद्योगों की ज़मीन भारत में तैयार की हैतबसे स्वास्थ्य भी एक उद्योग के रूप में विकसित हुआ। बडे बडे अस्पताल बने। दिल्ली में १९९८ में अपोलो अस्पताल को सरकार ने इस शर्त पर हज़ारों एकड ज़मीन को १०० करोड रूपये की १५ एकड ज़मीन महज एक रूपये प्रति वर्ष की लीज पर दे दी गई किवहां कुल क्षमता का एक तिहाई गरीबों के मुफ्त इलाज़ के लिए होगा। लेकिन जानकार बताते हैं कि एसा हो नहीं रहा।

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