Tuesday, October 23, 2007

पहाड़ की बात


पहाड़। क्या लगता है ये सुनकर। बहुधा यही कि हरी भरी वादियों के बीच उभरे शान्त चट्टानी इलाके। घने जंगल। सुन्दर नदियां। झरने ताल गाड़।
इन पहाड़ों के बीच कई संस्कृतियां पनपी हैं। विकसित हुई हैं। कुछ लुप्त हो गई हैं। कुछ बदल गई हैं। शेष बदल रही हैं। धीरे धीरे। समय के साथ। लेकिन जिस तरह इन पहाड़ों के बीच रहने वाले लोगों के नैसर्गिक सुख अपने हैं उसके बरक्स तमाम दुख भी अपने हैं। दुख जो बांटे तो जा सकते हैं। पर बांटे नहीं जाते। खैर पहाड़ के लोग नियति की तरह सुख दुख के इन सोपानों पर चढ़ते उतरते शान्त माहौल में अपनी ज़िन्दगी गुजार देते हैं।
अपने चिट्ठे के इस पहाड़ी इलाके में हम कोशिश करेंगे कि आपसे पहाड़ के पहाड़ियों के सुख दुख बांटें। जिस भी हद तक पहाड़ को जानने समझने जीने का मौका मिला है उसके अनुभव बयां करना भी पहाड़ को समझने का अच्छा ज़रिया हो सकता है।

आर्तनादः पांच दिन पिचहत्तर किलोमीटर




गंगोलीहाट में अभिलाषा एक प्रयास नाम से छात्रों का एक अनौपचारिक संगठन है जिसे रोहित भाई के साथ कुछ सालों पहले हम लोगों ने क्षेत्र के कुछ युवा साथियों की मदद से प्रारम्भ किया। हमें सूझी कि क्यों न‌ क्षेत्र के सबसे बीहड़ बेल और भैरंग पट्टी के इलाके की खाक छानी जाय। इस तरह तय हुआ पांच दिनों के गांव चलो अभियान का कार्यक्रम। सात आठ लोगों का हमारा दल गाते बजाते गांव गांव घूमा। पांच दिनों में पिचहत्तर किलोमीटर की पहाड़ी यात्रा थी यह। चट्टानों पर चढ़ती धूप ढ़लती शाम में चढ़ना उतरना। हमें मालूम हुआ कि यूं ही इस क्षेत्र को गंगोलीहाट का शोक नहीं कहा जाता।

बेल और भैरंग पट्टी इन दो पट्टियों में लगभग पचास गांव हैं जहां आज भी आवश्कता के हिसाब से न बिजली है न पानी ही। और सड़क तो आज भी एक सपना ही है। एक ग्राम प्रधान ने हमें बताया कि उन्होंने सड़क के लिए कई बार आन्दोलन किये। तत्कालीन विधायक नारायण राम आर्य के कार्यकाल में धोखे से आन्दोलन स्थगित करवा दिया गया। वादे कई बार हुए लेकिन उनका कोई अंश तक पूरा नहीं हुआ। नेताऒं का व्यवहार ग्रामीणों के लिए यह है कि सांसद बची सिंह रावत साल में एक बार चुनावों के दौर में इन क्षेत्रौं का हाल जानने पहुंचे। और फिर पांच साल के अपने कार्यकाल में कभी उनके दर्शन ग्रामीणों को नहीं हुए। प्रशासनिक अधिकारियों के लिए तो ये ग्रामीण अछूत की औकात रखते हैं। एक बुजुर्ग लगभग रोआंसे होकर हम से बोले कि मुझसे एक जनता दरबार के दौरान तत्कालीन उपजिलाधिकारी ने यह कहा कि पहले बोलना सीखकर आऒ फिर अपनी समस्या बताना।
सरकार दिन-ब-दिन कोई न कोई स्कूल खोलती है । स्कूल तो खुल जाते हैं लेकिन वहां पर्याप्त शिक्षक उपलब्ध नहीं कराये जाते। हमने एक दूरस्थ गांव चौरपाल में अपनी आंखों से देखा कि कि शिक्षक स्कूल से गायब थे। बच्चे आगन में बैठे शोर कर रहे थे। काफी ना नुकुर करने के बाद बच्चों ने बताया कि कि स्कूल में कभी घंटी तक नहीं बजती। मौजूदा समर में चौरपाल में इन्टर कौलेज है। जहां कहने को तो साइंस माध्यम के तौर पर है लेकिन वहां ना गणित के टीचर हैं ना ही बायोलौजी के। कोई शिक्षक इन बीहड़ गांवों में जाकर पढ़ाना पसन्द नहीं करता।
इन गांवों में महिलाऒं की जो स्थिति है वह महिला सशक्तिकरण के दावों की पोल खोलने के लिए काफी है। रिटायर फौजियों से प्राप्त की हुई कोटे की मुफ्त शराब पीकर इन महिलाऒं के पति रोज रात इन्हैं पीटते हैं। दिनभर काम के बोझ से थकी ये औरतें नियति मानकर इस अत्याचार को सह लेती हैं। महिला हिंसा विरोघी कोई भी कानून इनकी पहुंच से बहुत दूर है। कुछ महिलाओं ने जब अपनी दास्तान बयां की तो हमने उन्हें दसाईथल ( पिथौरागढ़ ज़िले का एक छोटा सा कस्बा) में महिलाओं द्वारा किये गए एक प्रयोग की जाकारी दी। इन महिलाओं ने अपने शराबी पतियों के खिलाफ़ बिच्छू घास की मदद से मोर्चा संभाला। जैसे ही किसी महिला का पति शराब पीकर घर में घुसता वो दूसरी महिलाओं को खबर कर देती और सभी महिलाएं बिच्छूघास लेकर उस शराबी पर पिल पड़तीं। ये प्रयोग शराब के विरुद्ध काफई हद तक सफल हुआ। पूरे गंगावली क्षेत्र में शराब ने महिलाओं को बुरी तरह परेशान किया है। २००६ में एक शराब विरोधी आंदोलन गंगोलीहाट में हुआ। जिसके बाद इलाके से शराब भट्टी तो हटा दी गई पर शराब की तस्करी अब भी बदस्तूर जारी है।

पानी की समस्या से बेल पट्टी और भैंरंग पट्टी का पूरा इलाका त्रस्त है। विडम्बना ये है कि सरयू और रामगंगा का पानी जिसे लगभग पचास किलोमीटर दूर ज़िला मुख्यालय पिथौरागढ़ को पाइपलाइनों द्वारा भेजा जाता है वो पानी दो से १० किलोमीटर के दूर के इलाकों में फैले इन गांवों तक नहीं पहुचाया जा सका है। ये ग्रामीण कई कोस की खड़ी चढ़ाई पार कर पीने का पानी लाने के लिए मजबूर हैं। तहसील मुख्यालय तक में पीने के पानी के लाले हैं। पिछले बीस सालों से प्रस्तावित लिफ्ट योजना अधर में है। अब जिस सालीखेत स्रोत से प्रस्तावित लिफ्ट योजना पर काम शुरू होने जा रहा है उसमें इतना पानी नहीं बचा है कि वो इन लगभग अस्सी गांवों की प्यास बुझा सके। लेकिन ना सरकार, ना जनप्रतिनिधि किसी का ध्यान इस ओर नहीं है।
इस यात्रा के दौरान जो कुछ भी हमने देखा या जो कुछ महसूस किया ऊपरी तौर पर देखने पर हमे वो हैरतअंगेज़ लग सकता है लेकिन सच मानिये हकीकत यही है......

No comments: